एकमात्र कसूर- यजीदी थी, मुस्लिम नहीं..! 10 सालों तक 'इस्लामिक-स्टेट' की यौन गुलाम रही फवज़िया

एकमात्र कसूर- यजीदी थी, मुस्लिम नहीं..! 10 सालों तक 'इस्लामिक-स्टेट' की यौन गुलाम रही फवज़िया
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यरूशलम: कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) की हैवानियत के निशाने पर एक मासूम यजीदी लड़की, फवज़िया अमीन सिदो, थी, जिसे केवल 11 साल की उम्र में अपहृत किया गया और 10 से अधिक वर्षों तक गाजा में कैद रखा गया। यजीदी समुदाय, जो मुख्यतः इराक और सीरिया में रहता है, हमेशा से ही धार्मिक अल्पसंख्यक रहा है और इनकी धार्मिक मान्यताओं को लेकर उन्हें कट्टरपंथी संगठनों द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है। लेकिन 2014 में जो हुआ, वह यजीदी इतिहास का सबसे काला अध्याय बन गया। इस साल, ISIS ने इराक के उत्तरी क्षेत्र सिंजर पर कब्ज़ा कर लिया, और फिर जिस नरसंहार की योजना बनाई, उसने हज़ारों यजीदी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर दी।

 

अगस्त 2014 में, इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने इराक के उत्तर-पश्चिमी सिंजर क्षेत्र पर हमला किया। यह वही इलाका था जहां यजीदी समुदाय का निवास था, और इस हमले ने न केवल वहां के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को झकझोर दिया, बल्कि पूरी दुनिया को ISIS की क्रूरता का परिचय भी दिया। सिंजर पर कब्जा करते ही ISIS ने वहां के कई यजीदी गांवों को घेर लिया। 14 साल या उससे अधिक उम्र के पुरुषों और लड़कों को परिवारों से अलग कर लिया गया और बाद में उन्हें गोली मार दी गई। दूसरी ओर, महिलाओं और लड़कियों को "युद्ध की लूट" (इस्लामी धर्मग्रंथों के अनुसार, माल-ए-गनीमत) के रूप में माना गया और उन्हें अपहरण कर गुलाम बना लिया गया।

फवज़िया अमीन सिदो भी इन्हीं लाखों यजीदी महिलाओं और लड़कियों में से एक थी, जिसे ISIS ने अगवा किया था। उसकी जिंदगी को उस वक्त के क्रूर जिहादियों ने अपने आतंक का एक और उदाहरण बना दिया। फवज़िया का सबसे बड़ा 'अपराध' यही था कि वह यजीदी थी, मुस्लिम नहीं। ISIS ने यजीदी महिलाओं और लड़कियों को यौन गुलाम (Sex Slave) बनाकर अपने दरिंदगी का शिकार बनाया। फवज़िया जैसे कई और यजीदी लड़कियों की कहानियां सामने आईं, जिन्होंने बताया कि उन्हें ISIS के इस्लामी आतंकियों के बीच खुलेआम "उपहार" के रूप में बांटा गया। उन्हें बिना किसी मानवीय अधिकारों के यौन दासता में डाल दिया गया, जहां उनके शरीर और आत्मा दोनों को बेरहमी से कुचला गया। ये महिलाएं और लड़कियां उन जिहादियों के हाथों मानवता से बहुत दूर की जिंदगी जीने पर मजबूर थीं, जिनके दिलों में न केवल दया की कमी थी, बल्कि उन्हें अपनी क्रूरता पर गर्व भी था।

यजीदी महिलाओं के इस नरक से निकलने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन कुछ महिलाएं किसी तरह से भागने में सफल रहीं और उन्होंने दुनिया के सामने अपने ऊपर हुए अत्याचारों की कहानी सुनाई। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस तरह के अत्याचार मानवता पर एक कलंक हैं। ऐसे जिहादी संगठनों का समर्थन करने वाले लोगों को आतंकवादियों से अलग नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे भी उसी विचारधारा के समर्थक होते हैं, जो निर्दोष लोगों को तकलीफ पहुंचाने में विश्वास करती है।

 

फवज़िया अमीन सिदो की कहानी दर्दनाक तो है ही, लेकिन उसकी रिहाई एक साहसिक प्रयास का परिणाम है। कई वर्षों तक कैद में रहने के बाद, फवज़िया को गाजा से बचा लिया गया। यह सफलता इजरायली सेना, अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के कारण संभव हो सकी। गाजा में चल रहे युद्ध के दौरान, फवज़िया को अपहरण करने वाले ISIS सदस्य की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसे भागने का मौका मिला। हालांकि, गाजा में सुरक्षा स्थिति इतनी खतरनाक थी कि उसे बचाने के कई प्रयास विफल हो गए। चार महीनों तक प्रयास जारी रहे, और अंततः, इजरायल और अन्य देशों के समन्वय के कारण, उसे गाजा से सुरक्षित बाहर निकाला गया। फवज़िया को जॉर्डन और इजरायल के रास्ते इराक लाया गया, जहां वह अपने परिवार से मिली।

इराकी अधिकारियों ने बताया कि जब फवज़िया को बचाया गया, तो उसकी शारीरिक स्थिति ठीक थी, लेकिन वह मानसिक और भावनात्मक रूप से काफी सदमे में थी। इतना समय बंधक बनकर बिताने के बाद, गाजा की युद्ध की भयावहता ने उस पर गहरा असर छोड़ा था।

अकेली नहीं है फवज़िया :-

ISIS ने 2014 में लगभग 6,000 यजीदी महिलाओं और बच्चों को अपहरण कर लिया था, और उनमें से करीब 3,500 को अब तक बचाया जा चुका है। लेकिन अभी भी लगभग 2,600 यजीदी लापता हैं। संयुक्त राष्ट्र ने ISIS द्वारा किए गए अत्याचारों को मानवता के खिलाफ अपराध और युद्ध अपराध घोषित किया है। यजीदी समुदाय के लोगों को जिस तरह के नरसंहार और यौन हिंसा का सामना करना पड़ा, उसने दुनिया भर में आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ खड़े होने की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है।

इस्लामिक स्टेट ने एक समय 88,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर कब्जा जमा रखा था, जो पूर्वी इराक से लेकर पश्चिमी सीरिया तक फैला हुआ था। इस इलाके में 80 लाख से अधिक लोग ISIS के क्रूर शासन के तहत नारकीय जीवन जीने पर मजबूर थे। फवज़िया की कहानी उस बर्बरता का केवल एक छोटा सा उदाहरण है, जिसे ISIS ने यजीदी समुदाय पर थोप रखा था। इस घटना से यह सवाल उठता है कि आखिरकार इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद के समर्थकों के खिलाफ दुनिया किस तरह खड़ी होगी? ISIS जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन करने वाले, चाहे वे किसी भी धर्म से हों, मानवता के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यह संगठन केवल एक विचारधारा को फैलाने के नाम पर इंसानों की जान लेने और उन्हें अमानवीय अत्याचारों का शिकार बनाते हैं।

फवज़िया की रिहाई एक बड़ी जीत है, लेकिन यह जीत तब और भी बड़ी होगी, जब दुनिया ऐसे आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने वाले सभी लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाएगी। केवल एक समुदाय या धर्म के आधार पर किसी के समर्थन में खड़ा होना और आतंकी संगठनों की गतिविधियों को नजरअंदाज करना उन निर्दोष लोगों के खिलाफ अपराध है, जो आतंकवाद का शिकार हो रहे हैं। ISIS द्वारा यजीदी महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ की गई दरिंदगी मानवता के लिए एक खुली चुनौती है। ऐसे समय में जब दुनिया के हर कोने से आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है, यह आवश्यक है कि इन क्रूर संगठनों के समर्थकों को भी आतंकवादी के रूप में देखा जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

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