नई दिल्ली : कोई भी व्यक्ति किसी भी कट्टर विचारधारा का हो, लेकिन जब वह किसी जिम्मेदार पद पर बैठता है, तो उसे न चाहकर भी अपनी विचारधारा से समझौता करना पड़ता है.समाज के विभिन्न वर्गों को उचित सम्मान देने का संवैधानिक के अलावा नैतिक दबाव भी होता है. अमूमन इन्हीं दौर से कट्टर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गुजर रहे हैं .वे समाज में अपनी छवि निर्माण की कोशिश में लगे हैं.उनके कुछ फैसले इसी ओर इशारा कर रहे हैं. योगी चाहते हैं कि वे अपने राज्य में सर्व मान्य नेता के रूप में स्थापित हों.
उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ करीब एक वर्ष पहले मुस्लिम समाज के खिलाफ जिस भाषा का उपयोग करते थे,अब वैसी भाषा इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.योगी अपनी परंपरागत कट्टरवादी हिंदुत्व की छवि से बाहर निकलने और समाज के सभी वर्गों के बीच गहरी पैठ बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं. उनके कुछ फैसले उन्हें उनकी पुरानी कट्टर छवि से अलग करते हैं.सीएम बनने के पहले मुसलमानों के विरोधी योगी अब मस्जिद भी जाने के लिए तैयार हैं.एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने कहा,था कि अगर मुझे मस्जिद से आमंत्रण मिलता है तो मैं वहां भी जाऊंगा.मैं हिंदू हूं और मेरी आस्था के अनुसार पूजा पद्धति की मुझे स्वतंत्रता है. मैं प्रदेश के हर धर्म-मत के नागरिक का मुख्यमंत्री हूं .
एक समय था जब योगी आदित्यनाथ मदरसों के विरोध में थे. लेकिनअब मदरसों को लेकर उनके विचार बदल गए हैं. योगी अब मदरसों और संस्कृत विद्यालय का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं .इसी तरह बीजेपी नेता जिस समय ताजमहल को लेकर बयानबाजी कर रहे थे, उस समय योगी स्वच्छता अभियान के तहत ताजमहल के परिसर में झाड़ू लगा रहे थे. ऐसा ही मामला पद्मावत फिल्म का भी है. इस फिल्म को लेकर योगी ने न तो कोई बयान दिया और न ही फिल्म को राज्य में प्रतिबंधित किया, जबकि वे खुद राजपूत हैं.यही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा जाकर इस मिथक को भी तोड़ा कि जो भी व्यक्ति नोएडा पहुंचेगा, उसकी सत्ता छिन जाएगी.सीएम योगी आदित्यनाथ ने समाज के मध्यम वर्ग के दिलों में जगह बनाने के लिए एक दशक से परेशान राज्य के घर खरीदारों के हित में सत्ता में आते ही बिल्डरों से 40 हजार से ज्यादा लोगों को घर उपलब्ध करवाए. यह घटनाएं उनके व्यक्तित्व परिवर्तन का संकेत देती है.
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