इस कथा के बिना अधूरा है योगिनी एकादशी व्रत, पापों से मिलेगी मुक्ति

इस कथा के बिना अधूरा है योगिनी एकादशी व्रत, पापों से मिलेगी मुक्ति
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आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि पर योगिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा. प्रभु श्रीकृष्ण से स्वयं युधिष्ठिर को योगिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था. ऐसी मान्यता है कि जो इस व्रत को करता है, उसे पृथ्वी पर सभी प्रकार के सुख मिलते हैं. मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा पाता है. योगिनी एकादशी का व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान फल की प्राप्ति होती है तथा व्रती को बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है. पंचांग के मुताबिक, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 01 जुलाई को प्रातः 10 बजकर 26 मिनट पर आरम्भ होगी। वहीं, इसका समापन 02 जुलाई को प्रातः 08 बजकर 42 मिनट पर पर होगा। ऐसे में 02 जुलाई को योगिनी एकादशी व्रत किया जाएगा।

योगिनी एकादशी व्रत कथा 
पौराणिक कथा के मुताबिक, स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का राजा रहता था। वह शिव भक्त था। प्रतिदिन महादेव की पूजा किया करता था। उसका हेम नाम का माली था, जो हर दिन पूजा के लिए फूल लाता था। माली की पत्नी का नाम विशालाक्षी था। वह बेहद सुंदर थी। एक बार जब सुबह माली मानसरोवर से फूल तोड़कर लाया, किन्तु कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद करने लगा।

राजा को उपासना करने में देरी हो गई, जिसके कारण वह क्रोधित हुआ। ऐसे में राजा ने माली को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि तुमने ईश्वर की भक्ति से अधिक कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग एवं कुष्ठ रोग का सामना करोगे। फिर वह धरती पर आ गिरा, जिसके कारण उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गई। वह कई सालों तक धरती पर कष्टों का सामना करता रहा। एक बार माली को मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। उसने अपने जीवन की सभी समस्याओं को बताया।

ऋषि माली को बातों को सुनकर आश्चर्य हुआ। ऐसे में मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत की अहमियत के बारे में बताया। मार्कण्डेय ने कहा कि इस व्रत को करने से तुम्हारे जीवन के सभी पाप समाप्त होंगे तथा तुम पुनः भगवत कृपा से स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे। माली ने ठीक ऐसा ही किया। प्रभु श्री विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे पुनः स्वर्ग लोक में स्थान प्रदान किया।

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