लखनऊ: 3 नवंबर को पूरे देश में भैया दूज का त्योहार उत्साह के साथ मनाया गया। इसी दिन उत्तर प्रदेश के संभल जिले में बीजेपी नेता और शिक्षा मंत्री गुलाब देवी ने मदरसा संचालक फिरोज खान को तिलक लगाया, जिससे विवाद उत्पन्न हो गया। इस घटना के बाद, मौलाना इश्तिखार ने एक फतवा जारी किया, जिसमें उन्होंने तिलक लगाने को गैर मजहबी बताया और मदरसा संचालक को इस्लाम से बाहर निकालने की बात कही।
मौलाना ने कहा कि किसी मुसलमान का तिलक लगाना हराम है और इसे इस्लाम के खिलाफ समझा जाना चाहिए। उन्होंने मदरसा संचालक को तौबा करने की सलाह दी और कहा कि अगर वह शादीशुदा है, तो उसका निकाह भी टूट सकता है। उनका मानना है कि इस्लाम धर्म के सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है और तिलक जैसे कर्म इस्लाम को कमजोर करते हैं। हालांकि, मदरसा संचालक फिरोज खान ने कट्टरपंथियों की आलोचना करते हुए कहा कि इस्लाम में कट्टरता नहीं है। उन्होंने सभी देशवासियों को भाई दूज की शुभकामनाएं दी और कहा कि अगर कोई मंदिर जाता है तो उसे परेशान नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने इस्लाम को शांति, प्रेम और सद्भाव का प्रतीक बताया।
इस घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: लाखों हिंदू भक्त हाजी अली और अजमेर शरीफ की दरगाहों में जाकर अपने सिर झुकाते हैं, लेकिन इस पर कभी कोई विवाद नहीं होता। फिर एक तिलक लगाने से मौलाना को इतनी आपत्ति क्यों है? क्या इस प्रकार का कट्टरपंथ सामाजिक एकता के लिए खतरा नहीं है? अगर एक मौलाना ऐसी सोच रखेगा, तो वह आम मुसलमानों को मिलजुलकर रहने का पाठ कैसे पढ़ा सकेगा?
इसके अलावा, कई हिंदू नेता इफ्तार पार्टियों में जालीदार टोपी पहनकर शामिल होते हैं, तो क्या मदरसा संचालक एक तिलक भी नहीं लगा सकता? ऐसी नफरत और भेदभाव क्यों? यदि समाज में सहिष्णुता और एकता की भावना को बढ़ावा देना है, तो सभी धर्मों के लोगों को एक-दूसरे के रीति-रिवाजों का सम्मान करना होगा।
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