कोलकाता : सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार (29 अप्रैल) को कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बंगाल की ममता बनर्जी सरकार द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका को जुलाई 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें संदेशखाली में जमीन पर कब्जा करने और यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने के लिए CBI को निर्देश दिया गया था। ममता सरकार CBI जांच रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।
ममता सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील और कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से कुछ हफ़्ते के बाद मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया, जिसके बाद मामले को स्थगित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है, जिसे वर्तमान SLP के साथ दायर करने के लिए एकत्र नहीं किया जा सका है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को स्थगित करने पर आपत्ति जताई, लेकिन कोर्ट ने उनका बयान दर्ज करने के बाद उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया कि "इस याचिका की लंबितता को किसी भी उद्देश्य के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, बंगाल सरकार, हाई कोर्ट में इस आदेश का कोई भी लाभ लेने की कोशिश नहीं करेगी, यानी शीर्ष अदालत ने CBI जांच रोकने से साफ़ इंकार कर दिया।
आदेश की घोषणा के बाद, न्यायमूर्ति गवई को यह कहते हुए सुना जा सकता है, "राज्य को कुछ निजी (व्यक्तिगत) लोगों के हितों की रक्षा के लिए याचिकाकर्ता के रूप में क्यों आना चाहिए?" मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस बात पर हैरानी जताई कि किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ हो रही जांच का बंगाल सरकार विरोध कर रही है। गौरतलब है कि बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) से अब निलंबित सदस्य शाहजहां शेख इस मामले में मुख्य आरोपी हैं। इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार के बारे में टिप्पणियाँ हैं। उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि यह अनुचित है क्योंकि राज्य सरकार ने पूरी कार्रवाई की है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि, याचिकाकर्ता के विद्वान वरिष्ठ वकील एक सप्ताह के बाद स्थगन चाहते हैं। मामला अवकाश के बाद स्थगित कर दिया गया है। हालाँकि, हम अधिवक्ता सिंघवी का बयान दर्ज करते हैं कि इस याचिका की लंबितता का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए आधार के रूप में नहीं किया जाएगा।
बता दें कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में रहने वाली महिलाओं के कथित यौन उत्पीड़न और जबरन कब्ज़ा की गई आदिवासी भूमि पर समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर स्वत: संज्ञान लिया था। रिपोर्ट के अनुसार, ये घटनाएं पूर्व प्रधान शाहजहां शेख और उनके कार्यकर्ताओं की निगरानी में हुईं। इससे पहले शाहजहां शेख के अनुयायियों द्वारा राशन घोटाले की जांच करने गई ED अधिकारियों पर हमला किया गया था। कोर्ट ने ED अधिकारियों पर हुए इस हमले की जांच CBI को ट्रांसफर कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की थी।
अब इस फैसले के जरिए हाईकोर्ट ने संदेशकाली में हुए कथित अत्याचार की जांच सीबीआई को करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने निष्पक्ष जांच की जरूरत पर जोर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि, “इसलिए, इस अदालत की सुविचारित राय है कि न्याय और निष्पक्षता के हित में यह आवश्यक है और विभिन्न शिकायतों और आरोपों पर शीघ्र विचार करने के लिए निष्पक्ष जांच की जानी आवश्यक है। राज्य को मामले की जांच के लिए हमारे द्वारा नियुक्त की जाने वाली उक्त एजेंसी को आवश्यक सहायता प्रदान करनी होगी।''
उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कारणों में से एक यह था कि हाल ही में संदेशखाली में हुई एक घटना के संबंध में सीबीआई पहले से ही जांच कर रही है। न्यायालय ने कहा कि पक्ष एक पखवाड़े की अवधि के भीतर सीबीआई के समक्ष अपनी शिकायतें दर्ज करने के लिए स्वतंत्र होंगे। विशेष रूप से, न्यायालय ने इस तथ्य पर न्यायिक संज्ञान लिया कि राज्य ने उन लोगों की भूमि वापस करने के लिए एक आयोग का गठन किया था जिनकी जमीनें हड़प ली गई थीं और कहा था कि पीड़ितों को मुआवजा देना भी राज्य का कर्तव्य है क्योंकि उसने इस रुख को स्वीकार कर लिया है कि जमीन सचमुच हड़पी गईं हैं।
हाई कोर्ट ने ममता सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि, “जिस असली भूमि मालिक से जमीन छीनी गई है, वह न केवल कब्जा वापस पाने का हकदार है, बल्कि जमीन की प्रकृति और चरित्र, जो जमीन हड़पने से पहले मौजूद थी, उसे भी बहाल करना होगा। जब इतने बड़े पैमाने पर जमीन हड़पने की सूचना मिलती है, तो निस्संदेह एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते राज्य को उसे आगे बढ़ाना चाहिए और सही भूमि मालिकों के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए, न कि आरोपी पर यह कहकर उंगली उठानी चाहिए कि आरोपी को ही उपचारात्मक उपाय करने हैं।''
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि वह पूरी जांच की निगरानी करेगी और ऊपर दिए गए निर्देशों के अनुसार, CBI द्वारा रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद आगे के आदेश पारित करेगी। न्यायालय ने संदेशखाली क्षेत्र में संबंधित और संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी लगाने जैसे अन्य निर्देश भी पारित किए थे। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि, "राज्य सरकार इसके लिए आवश्यक धनराशि मंजूर करेगी और निविदा प्रक्रिया आदि जैसी औपचारिकताओं को छोड़कर काम प्राथमिकता के आधार पर तारीख से 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा।"
बता दें कि शेख संदेशखाली से उत्पन्न लगभग 42 आपराधिक मामलों में मुख्य आरोपी है। लंबे समय तक फरार रहने के बाद जब हाई कोर्ट ने फटकार लगाई, तब 50 दिनों के बाद बंगाल पुलिस ने शेख को गिरफ्तार किया था। अदालत ने शेख को महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव वाले एक 'मजबूत व्यक्ति' के रूप में वर्णित किया है, उन्हें जिला परिषद, उत्तर 24 परगना के कर्माध्यक्ष के रूप में चुना गया था, और सत्तारूढ़ दल से उनके गहरे ताल्लुक थे। सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस की "लुका-छिपी" रणनीति और राशन घोटाले की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता पर चिंता व्यक्त की, जिसमें शेख एक प्रमुख व्यक्ति हैं।
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