हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी संतान हो, उसका कुल आगे बढ़ें और इसके लिए लोग अनेक तरह के उपायों को अपनाते है जिनमे कुछ औषधियों का सहारा लेते है तो कुछ टोन टोटकों का. आदिवासी लोग भी संतान प्राप्ति के लिए कुछ उपाय अपनाते थे किन्तु वे हमेशा आयुर्वेद और प्राकृतिक तरीको से ही अपनी समस्यायों का समाधान पाने की कोशिश करते थे. संतान प्राप्ति का उपाय भी आदिवासियों को जंगलों और खेतों में उगने वाली एक जड़ी बूटियों से मिला जिसे शिवलिंगी कहा जाता है. शिवलिंगी का नाम इसके शिवलिंग के जैसे दिखने वाले बीजों की वजह से पडा. इसके बीज के अनेक तरह के चमत्कारिक गुण है जिससे बहुत से रोगों से मुक्ति पायी जा सकती है किन्तु शिवलिंगी मुख्य रूप से संतान प्राप्ति के लिए ही उपयोगी माना जाता है. वनस्पति विज्ञान में इसे ब्रयोनोप्सिस लेसिनियोसा कहा जाता है. इस पौधे की महत्वता यहीं खत्म नही होती बल्कि कुछ समुदाय के लोग तो इसकी पूजा भी करते है और इस हर्बल बूटी को संतान प्राप्ति के लिए ईश्वर का वरदान मानते है.
शिवलिंगी का संतान प्राप्ति में उपयोग: आदिवासियों का एक समुदाय जिसे पातालकोट के नाम से जाना जाता है उन्हें ऐसे जंगली जड़ी बूटियों का बहुत अधिक अनुभव और ज्ञान है. वे शिवलिंगी का इस्तेमाल बड़ी ही समझ बुझ के साथ करते है. जड़ी बूटियों की जानकारी के अनुसार वे किसी महिला के मासिक धर्म समाप्त होने के 4 दिन बाद से उसे रोज 7 दिन तक 5 शिवालिंगी के बीज खिलाते है. अगर कोई महिला बाँझ है तो उसे बीजों को तुलसी और गुड के साथ अच्छी तरह पिसाकर औषधि के रूप में दिया जाता है. ताकि उसकी गोद भरने की भी संभावना बनी रह सके.
इसके अलावा संतान प्राप्ति की चाह रखने वाली महिलाओं को शिवलिंगी के पत्तों की चटनी भी विशेष रूप से बनाकर खिलाई जाती है. कुछ महिलायें तो इसकी पत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर इसकी सब्जी बना लेती है और फिर उसका सेवन करती है. इससे भी उन्हें लाभ मिलता है और वे जल्द ही गर्भधारण करती है. इसके लगातार सेवन से होने वाला शिशु भी हष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त रहता है और महिला को भी प्रसव के दौरान पीड़ा में राहत मिलती है.
शिवलिंगी से शिशु के स्वास्थ्य को बढाने का उपाय: शिवलिंगी का इस्तेमाल होने वाले बच्चे को चुस्त और स्वस्थ बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके औषधीय गुण माता के गर्भ में बच्चे को ही सारे पौषक तत्व दे देते है कि सारी उम्र वे गुण बच्चे में विराजमान रहते है.
उपाय: इस उपाय के अनुसार पुत्रंजीवा, नागकेसर, पारस पीपल के बीज और शिवलिंगी को समान मात्रा में लें और उन्हें सुखाकर पीस लें. इस तरह इनका एक पाउडर बन जाता है. अब इस पाउडर की आधा चम्मच को गर्भवती महिला को गाय के दूध के साथ दें. इस उपाय को लगातार 7 दिनों तक अपनाने से गर्भ में बच्चा स्वस्थ रहता है.
इस चूर्ण को स्वास्थ्यवर्धक चूर्ण माना जाता है इसलिए इसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता है. बुखार, खांसी, जुखाम, त्वचा रोग और पेट की समस्यायों में भी इस चूर्ण को प्रयोग किया जा सकता है. इस तरह शिवलिंगी आयुर्वेद में अपना एक अहम स्थान रखता है.
शिवलिंगी का मिथक या सच्चाई: कुछ आदिवासी समुदाय शिवलिंगी को एक ऐसी हर्बल बूटी मानते है जिससे नर शिशु जन्म लेता है और इसी चाह से इसका इस्तेमाल भी किया जाता है. किन्तु आधुनिक विज्ञान पद्धिति इस बात को मानने को स्वीकार नही है. नर शिशु या मादा शिशु का जन्म ईश्वर के हाथ में होता है इसलिए इस तरह औषधि से नर संतान की प्राप्ति की बातें आज के समय के लोगों को जरुर अजीब लग सकती है. किन्तु आदिवासियों में आज भी इसे पुत्र प्राप्ति का सबसे सफल उपाय माना जाता है क्योकि उन्हें इसके परिणाम मिले है. इसलिए इनकी बातों को भी नकारा नही जा सकता.
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