श्राद्ध-कर्म में तर्पण को सबसे अहम अंग माना गया है। तत्पश्चात, श्रद्धानुसार भोजन बनाकर कराना दूसरा अहम अंग है। तीसरा अंग है त्याग। इसके तहत श्राद्ध पक्ष में बनने वाले भोजन को 6 हिस्सों में विभाजित किया गया है। शास्त्रों में गाय, कौवा, बिल्ली, कुत्ता एवं ब्राह्मण को भोजन कराकर पितरों को सुखी एवं प्रसन्न करने की बात कही गई है। वही श्राद्ध से जुड़ी कुछ ऐसी बातें है जो आप शायद ही जानते होंगे। आइये आपको बताते है...
कुछ खास बातें:-
पितृगण सदैव विश्वदेवों के साथ श्राद्वान्न ग्रहण करते हैं। ये ही विश्वदेव श्राद्ध का अन्न ग्रहण कर पितरों को संतृप्त करते हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक संतापों को दूर करते हैं।
श्राद्ध न करने पर पितरों को पितृलोक में अन्न-जल के अभाव की गहन पीड़ा सहन करनी पड़ती है, जिससे श्राद्ध न करने वाले वंशजों को भीषण परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
श्राद्ध में जो अन्न पृथ्वी पर बिखेरा जाता है, उससे पिशाच-योनि तृप्त होती है। पृथ्वी पर जल डालने से वृक्षयोनि को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।
गंध और दीपक से देवत्व योनि को प्राप्त हुए पितरों की तृप्ति होती है।
हमारे अन्न, जल, तिल और वस्त्रों का दान करने से मनुष्य योनि को प्राप्त पितर संतृप्त होते हैं।
तिल को देवान्न कहा गया है। तिल ही वह पदार्थ है, जिससे पितृगण तृप्त होते हैं। इसलिए काले तिलों से श्राद्ध कर्म करना शुभ माना गया है।
अगर घर में कोई भोजन बनाने वाला न हो तो फलों और मिष्ठान का दान कर सकते हैं।
अपने पितरों को श्राद्धान्न देने के पश्चात् उनका स्मरण करते हुए इस मंत्र का तीन बार जाप करना चाहिए-
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्तु ते।।
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