पैसे की तंगी के कारण हारमोनियम बजाकर किया गुजारा, आकस्मिक मृत्यु ने किया जनता को दुखी

पैसे की तंगी के कारण हारमोनियम बजाकर किया गुजारा, आकस्मिक मृत्यु ने किया जनता को दुखी
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आज यानी 25 दिसंबर को सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की पुण्यतिथि है. जेल सिंह नेहरु व गाँधी परिवार के सबसे बड़े समर्थक थे, जिस वजह से कई बार उनकी आलोचना भी होती थी. देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार से अच्छे सम्बन्ध के कारण जेल सिंह कम समय में बहुत उपर ऊंचाई तक पहुँच गए थे. जेल सिंह का राष्ट्रपति काल काफी चुनौती से भरा रहा, लेकिन उन्होंने इसे अपनी समझ से पूरा किया.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जेल सिंह को जरनैल सिंह भी कहते थे. उनका जन्म 5 मई, 1916 को पंजाब के फरीदकोट जिले के संध्वान ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम किसान सिंह था, जो एक किसान एवं बढई थे. बचपन में ही उनकी माता चल बसी थी, जिस वजह से इनका पालन पोषण इनकी मौसी ने किया था. जेल सिंह जी को शुरू से ही पढाई से ज्यादा लगाव नहीं था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं की. जेल सिंह जी को उर्दू भाषा सिखने का मन में हमेशा से काफी उत्साह रहा, सो अपनी इस इच्छा पूर्ती के लिए उन्होंने उर्दू का ज्ञान प्राप्त भी किया. थोड़े समय बाद उन्हें गाना-बजाना सीखने की धुन सवार हुई, पैसे की तंगी के कारण वे एक हारमोनियम बजाने वाले के यहाँ उसके कपड़े धोकर,  उसका खाना बनाकर हारमोनियम बजाना सीखने लगे. पिता की राय मिलने पर वे गुरुद्वारा में भजन कीर्तन करने लगे. कुछ समय पश्चात उन्होंने अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कॉलेज से गुरु ग्रंथ का पाठ सिखा,  जिससे वे गुरुग्रंथ साहब के ‘व्यावसायिक वाचक’ बन गए थे और उन्हें ज्ञानी की उपाधि से सम्मानित किया गया.

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अगर आपको नही पता तो बता दे कि ज्ञानी जेल सिंह बेहद धार्मिक व्यक्तित्व वाले इंसान थे. 25 दिसम्बर, 1994 में तख्त श्री  केशगड़ साहिब जाते समय उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उनकी मृत्यु हो गई. दिल्ली में जहां ज्ञानी जैल सिंह का दाह-संस्कार हुआ था, उसे एकता स्थल के नाम से जाना जाता है. आज भी लोग वहां जा कर उन्हें श्रधांजलि देते है. वह केवल एक दृढ निश्चयी और साहसी व्यक्तित्व वाले इंसान ही नहीं बल्कि एक समर्पित सिख भी थे. भारतीय राजनीति में आज भी उन्हें एक निरपेक्ष और दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है.

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