छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के किसानो पर धान की ग्रीष्म कालीन फसल लगाने पर, अल्प वर्षा का हवाला देते हुए रोक लगा दी. प्रदेश में धान की बुवाई करने वाले 43 लाख किसान है जो 1.75 लाख हैक्टयर जमीं पर धान की बुवाई करते है. सरकारी रोक में सिर्फ इतना ही नहीं कहा गया कि, ग्रीष्म कालीन बुवाई न की जाये, बल्कि बिजली कनेक्शन काटने तक की धमकी भी दी गई. पिछली फसल ख़राब होने की भरपाई के लिए किसान गर्मी में धान की फसल लगा कर जीवन यापन करने योग्य कमाई करने की सोच रखता है. मगर ये सरकारी नीतियां शायद किसान को ओर गर्त में ले जा कर छोड़ेगी. जहाँ किसान देश में आये दिन आंदोलन कर रहा है, आत्महत्या कर रहा है, ऐसे में सरकार उसकी समस्याएँ सुलझाने के बजाय ऐसे फरमान जारी कर उसे ओर उकसा रही है. देश के अन्नदाता की दुर्दशा की कहानी नई नहीं है. मौसम, बिजली, खाद, बीज, महंगाई , दाम और ये सरकारी नीतियां, इन सब के बीच पिसता किसान अपना दुखड़ा सुनाये भी तो किसे. इस वर्ष की बात की जाये तो वैसे भी पुरे देश में 25-30% भूमि पर ही बुवाई संभव हो सकी है. न मुवावजा हाथ लगता है न फसल के उचित दाम. ऐसे में आसमान की और ताकती खेत की मेढ पर बैठे किसान की मायूस आँखे शायद ईश्वर से ही गुहार लगाती होगी. यहाँ क्लिक करे मुफ्त दवा का दाम चुकाते है गरीब अन्नदाता आत्महत्या करे या आन्दोलन ? क़र्ज़ ने फिर ली दो किसानों की जान पिता से मिलने अस्पताल पहुंचे रवि किशन