नईदिल्ली। त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाईट क्रमांक आईसी 814 ने उड़ान भरी। मगर विमान को अपने गंतव्य की ओर पहुंचने से पहले ही अपहर्ताओं ने अमृतसर में लैंड करवाया। यहां विमान कुछ देर के लिए, रूका और फिर यहां से इसे लाहौर के लिए उड़ा दिया गया। इस मामले में पाकिस्तान की सरकार द्वारा अनुमति दिए बिना, विमान रात्रि 8.07 बजे लाहौर में लैंड करवाया गया। इसी बीच भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को विमान के अपहृत होने की जानकारी मिली। इस विमान को लाहौर से अफगानिस्तान ले जाया गया। आतंकियों और भारत सरकार के बीच इस अपहरण कांड को लेकर 8 दिनों तक बातचीत चलती रही। बाद में सरकार को आतंकियों की मांग के आगे झुकना पड़ा मगर सरकार ने दावा किया कि आतंकियों की मांगों को कम करने में सरकार सफल रही। विमान दुबई के रास्ते कंधार के आसमान में पहुंचा। जहां इसे कंधार एयरपोर्ट पर लैंड करवाया गया। कंधार पर तालिबानी आतंकियों का प्रभाव था। विमान में सवार करीब 180 यात्री अपहरण होने से सहम गए थे। कोई भी आतंकियों के खिलाफ, कार्रवाई करने या उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। इसी बीच एक यात्री ने अपहर्ताओं का विरोध किया तो उसे अपहर्ताओं ने मार दिया। उस पर चाकू से कई वार किए गए थे। इसकी पहचान रूपेन कत्याल के तौर पर हुई। आतंकियों ने सरकार को धमकी दी थी कि, वह आतंकी मौलाना मसूद अजहर और अन्य साथियों की रिहाई को लेकर थी। उनका कहना था कि, भारत सरकार उन्हें 36 चरमपंथी साथियों के साथ करीब 20 अमेरिकी डाॅलर दे दे। भारत सरकार को आतंकियों की यह बात माननी पड़ी। हालांकि, विमान में सवार एक यात्री सिमोन बरार की तबियत खराब होने के कारण, उसे छोड़ने की अपील की गई। जब भारत सरकार और आतंकियों के बीच बातचीत हो गई तो अपहर्ता विमान से उतरे और वहां मौजूद वाहनों में सवार होकर वहां से चले गए। भारत सरकार ने 31 दिसंबर को इस मामले में किए गए समझौते की घोषणा की। पाकिस्तान का गोल्ड लवर जफर सुपारी 25 दिसंबर को कुलभूषण मिलेंगे अपनी माँ और पत्नी से हाफिज की पार्टी को मंजूरी नहीं देने का आग्रह