देश में शिक्षा के दयनीय आंकड़ें ?

पिछले दिनों यूनेस्को द्वारा ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमे देश की शिक्षा गुणवत्ता पर भी प्रकाश डाला गया था. इसमे देश के लिए शिक्षा के क्षेत्र में काफी चौंकाने वाले आंकड़े रहे हैं.  इस रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि, देश की एक-चौथाई जनसंख्या निम्न माध्यमिक शिक्षा भी पूरी नहीं करती है. अगर आंकड़ों में बात की जाए तो 26.6 करोड़ वयस्क तथा 3.3 करोड़ युवा जनसंख्या पढऩे में असक्षम है. 

रिपोर्ट में इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि, (एस.डी.जी.) के बावजूद 12 वर्षों तक सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाने के आह्वान के विपरीत 28 लाख बच्चे स्कूलों से बाहर होते हैं, क्योंकि शिक्षा केवल 12 वर्ष की आयु तक अनिवार्य की गई है. साथ ही खुलासा यह भी हुआ है कि, भारत तय सीमा से या कम जी.डी.पी. से खर्च कर रहा है. जी.डी.पी. का 5 प्रतिशत की बजाय 3.8 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च हो रहा है. 

लिंग तुलनात्मकता की अगर बात की जाए, तो बेहद गरीबी में जीवन यापन करने वाले 73 प्रतिशत पुरूष और 67 प्रतिशत महिलाओं ने केवल अपनी प्राथमिक शिक्षा ही पूरी की है. भारत में 1983 से 2010 के बीच किए गए कई नेशनल सैम्पल सर्वेज की समीक्षा यह संकेत देती है कि, तरक्की के बावजूद अनुसूचित जनजातियों व अनुसूचित जातियों की शिक्षा का स्तर औसत से कहीं कम था. 2010 में राष्ट्रीय औसत 23 प्रतिशत की तुलना में अनुसूचित जनजातियों में उच्च शिक्षा उपस्थिति दर 2 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत तथा अनुसूचित जातियों में 4 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत तक पहुंच गई है. 

शिक्षा में सुधार के लिए मिल-जुल कर सहयोग जरूरी

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