न्यूनतम राशि के अधिनियम के खिलाफ एकजुट हुए संगठन
न्यूनतम राशि के अधिनियम के खिलाफ एकजुट हुए संगठन
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नई दिल्ली : सरकारी बैंकों को बैंक खातों में न्यूनतम राशि नहीं होने पर जुर्माना वसूलने का अधिकार देने वाले अधिनियम के खिलाफ देश के प्रमुख सामाजिक/ राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने लामबंद होकर इससे जुड़े अधिनियम पर रोक लगाने की मांग की है. यह मांग भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा अप्रैल और नवम्बर 2017 की अवधि में अपने ग्राहकों से 1,771 करोड़ रूपये जुर्माने के तौर पर वसूले जाने के बाद तेज हुई है.

उल्लेखनीय है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने यह जुर्माना उन ग्राहकों पर लगाया गया है जो ग्राहक अपने बैंक खाते में बैंक द्वारा निर्धारित मासिक औसतन न्यूनतम राशि को अपने खाते में नहीं रख पाए. खास बात यह है कि एसबीआई का जुलाई से सितम्बर का त्रैमासिक मुनाफा 1,586 करोड़ रूपये था.इसी तरह यह जुर्माना एसबीआई के अप्रैल से सितम्बर के कुल मुनाफे 3,586 करोड़ रूपये का लगभग आधा है. विडंबना यह है कि सरकार ग्राहकों को अपने घाटे की पूर्ति का साधन बना रही है .

इस बारे में सामाजिक/ राजनैतिक संगठनों का कहना है कि बैंक अपने बढ़ते डूबे क़र्ज़ को काबू में नहीं कर पाए .भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार मार्च 2017 में भारतीय बैंकों का डूबा क़र्ज़ 7,11,312 करोड़ रूपये था, जो जून 2017 में बढ़ कर 8,29,338 करोड़ रूपये और सितम्बर 2017 तक 8,36,782 करोड़ रूपये हो गया था.जो कॉर्पोरेट कर्ज़दार बैंकों का क़र्ज़ नहीं चुका रहे हैं, उसकी भरपाई न्यूनतम राशि के अधिनियम के माध्यम से की जा रही है .एसबीआई ने मई 2012 में अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के मकसद से इस जुर्माना वसूलने के अधिनियम को हटा दिया था लिया था जिसे अप्रैल 2017 में वापस से लागू कर दिया गया. इसलिए कई संगठनों ने इस अधिनियम पर रोक लगाने की मांग की है.

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