पिछले साल जुलाई से पहले हार्दिक पटेल को कोई नहीं जानता था.लेकिन आज देश और सोशल मीडिया पर उनकी ख़ासी चर्चा है. 20 जुलाई 1993 को वीरमगम के पास चन्दन नगरी, गुजरात में भरत और उषा पटेल के घर जन्मे हार्दिक के पिता भी भाजपा के कार्यकर्ता हैं. 24 साल के अहमदाबाद के सहजानंद कॉलेज से बी कॉम ग्रेजुएट इस युवा ने आरक्षण के मुद्दे पर पाटीदार समाज की महारैली में लाखों लोगों को इकट्ठा कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था. तब से हार्दिक आरक्षण की हुंकार का पर्याय बन गए हैं .एक ऐसा शख्स जिसने गुजरात की हवा बदल दी.
उल्लेखनीय है कि पाटीदार समाज राज्य सरकार से 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहा है.गुजरात में आबादी का पांचवां हिस्सा पटेल समुदाय का है. पटेल समुदाय आरक्षण और ओबीसी दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर पिछले कई सालों से आंदोलनरत है.इस आंदोलन की कमान अब नई पीढ़ी के हार्दिक पटेल की हाथों में है. उनकी अगुआई में गुजरात में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में गत वर्ष 25अगस्त की रैली में 10 लाख से भी अधिक लोग सड़कों पर उतरे. उनके तेवर और मक़सद के आगे राज्य की भाजपा सरकार के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दबाव में दिखाई दिए. हार्दिक की गिरफ्तारी ,फिर रिहाई, फिर कोर्ट के आदेश से छह मास तक गुजरात से बाहर से रहने जैसे अन्य कारणों से यह युवा नेता सुर्ख़ियों में आ गया. शिव सेना और कांग्रेस को उनमे अपना भविष्य नजर आने लगा. यही कारण है कि गुजरात चुनाव पूर्व पीएम मोदी को गुजरात के कई दौरे करने पड़े.
इस आंदोलन से जुड़ने से पहले हार्दिक वर्ष 2011 में हार्दिक सरदार पटेल समूह से जुड़े.जुलाई 2015 में हार्दिक की बहन, मोनिका राज्य सरकार की छात्रवृत्ति प्राप्त करने में जब विफल रही तो उन्होंने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का निर्माण किया. जिसका लक्ष्य अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल होना था. गुजरात चुनाव से पहले इस आरक्षण आंदोलन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी.
अपने लक्ष्य को पाने के लिए हार्दिक ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया. रही सही कसर युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और पिछड़े नेता अल्पेश ठाकोर ने पूरी कर दी. इस तिकड़ी ने भाजपा को पसीने ला दिए. यही कारण रहा कि गुजरात में भाजपा की सीटें घटी लेकिन मोदी मैजिक से सरकार बनाने में सफल रही .चूँकि पाटीदार समाज को अभी अपना लक्ष्य नहीं मिला है , इसलिए अब यह आंदोलन एक बार फिर हार्दिक की अगुआई में जोर पकड़ेगा. पूरी तरह विपक्षी घोषित हो जाने के बाद अब इस आंदोलन में कांग्रेस का भी साथ मिल गया है .देर सवेर आरक्षण का यह पाटीदार आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ेगा, तब दुबारा सीएम बने विजय रुपाणी की अग्नि परीक्षा होगी.
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