6 दिसंबर 1992 से 6 दिसंबर 2017 तक की एक चौथाई सदी में देश का राजनीतिक इतिहास काफी बदल गया है। इस दौरान राजनीति के जातिवादी व धार्मिक ध्रुवीकरण ने न केवल सत्तापीठों को बदला, बल्कि सत्ता के चरित्र को भी प्रभावित किया है। भाजपा अपने अब तक के चरम पर केंद्र के साथ 18 राज्यों की सत्ता में है, वहीं कांग्रेस के पास महज पांच राज्य बचे हैं । इस बड़े बदलाव के केंद्र में अयोध्या का वह विवादित ढांचा भी है। जब यह घटना हुई तब केंद्र में कांग्रेस की ऐसी सरकार थी जिसमें संगठन व सत्ता दोनों में नेहरू-गांधी परिवार का नेतृत्व नहीं था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव ने पांच साल तो पूरे किए, लेकिन भाजपा की बढ़त को नहीं रोक पाए। साढ़े तीन साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर पहली बार केंद्रीय सत्ता का स्वाद चखा।
अल्पमत व सहयोगी न मिलने से सरकार 13 दिन ही चली, लेकिन सत्ता सा स्वाद चख चुकी भाजपा ने इसके बाद मुड़कर नहीं देखा। अगले दो साल कांग्रेस समर्थित ढुलमुल गठबंधन सरकारों के रहे। जिनका नेतृत्व एच डी देवेगौड़ा व इंद्रकुमार गुजराल ने किया। 1998 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने फिर से सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर नए सहयोगियों के साथ सरकार बनाई। लगातार दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली, लेकिन साल भर के भीतर ही अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से एक वोट से भाजपा की वाजपेयी सरकार गिर गई। एक वोट से सरकार गिरने से मिली सहानुभूति व कारगिल युद्ध की जीत ने छह माह बाद हुए चुनाव में फिर से सत्ता दिला दी। इस समय कमजोर हुई कांग्रेस की जगह कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने अपना दबदबा बनाया और केंद्र की सरकारें बनाने व बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई।
यह वह समय था जबकि सोनिया गांधी ने कांग्रेस की मजबूती के लिए दिन रात एक किया और दूसरी तरफ वाजपेयी सरकार की जनता पर पकड़ ढीली पड़ी। नतीजतन 2004 में बाजी पलट गई और कांग्रेस सरकार बनी जो लगातार दस साल चली। इस दौरान अयोध्या आंदोलन व बाबरी ध्वंस के मुद्दे धूमिल हो गए और मंदिर-मस्जिद पर राजनीतिक ध्रुवीकरण कमजोर पड़ा। हालांकि इस दौर में मंडल-कमंडल में बंटी राजनीति में कांसीराम ने बसपा का नया आधार बनाया और मौके के अनुसार राजनीतिक जोड़-तोड़ कर उत्तर प्रदेश में मायावती के रूप में नया नेतृत्व खड़ा कर दिया, जिसने दलित-मु्िस्लम समीकरण के साथ बहुजन समाज की राजनीति से भाजपा व कांग्रेस को हाशिए पर कर दिया। इस कालखंड में 2002 में गुजरात में गोधरा कांड ने राजनीति को नई करवट दी।
अयोध्या आंदोलन में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के सारथी के रूप में गुजरात से बाहर राजनीतिक फलक पर अपनी पहचान बनाने वाले नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। राज्य में जबरदस्त दंगों ने पूरे देश को दहला दिया। हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण में नरेंद्र मोदी ने विरोधियों का डटकर मुकाबला करते हुए अपनी जगह बनाई। बारह साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में विकास की नई राजनीति खड़ी की और उस पर चढ़कर दिल्ली पहुंचे। घपले-घोटालों में घिरी कांग्रेस सरकार के लिए मोदी के विकास के एजेंडे को चुनौती दे पाना संभव नहीं हुआ और उसके बाद मोदी ने वह इतिहास रचा जिसे संघ व जनसंघ के पुरोधाओं ने सपने में भी नहीं सोचा था। मोदी के राष्ट्रीय आविर्भाव के साथ कांग्रेस अपने न्यूनतम स्तर पर चली गई। लोकसभा चुनाव में उसे इतनी सीटें भी नहीं मिली कि नेता प्रतिपक्ष का पद उसे हासिल हो सके।
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