इस साल एक स्कूल में ऐसा जघन्य हत्याकांड हुआ की सबकी रूह काँप गई. गुरुग्राम में स्थित रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 8 सितंबर को दूसरी कक्षा के 7 वर्षीय छात्र प्रद्युम्न को उसके पिता ने स्कूल छोड़ा. उसके 15 मिनिट बाद ही स्कूल के बाथरूम में गला रेतकर बेरहमी से उसकी हत्या कर दी गई. मासूम प्रद्युम्न स्कूल के बाथरूम में खून से लथपथ बाहर आने के लिए तड़पता रहा और वहीं मौत के आगोश में समा गया.
हत्या के बाद गुरुग्राम पुलिस ने सबसे पहले बस कंडक्टर अशोक कुमार को पकड़ लिया. आरोप लगा कि उसे गंदा काम करते हुए प्रद्युम्न ने देख लिया था इसीलिए उसने हत्या कर दी. अशोक ने अपना जुर्म भी कुबूल कर लिया था, पर कुछ दिन बाद उसने कहा कि पुलिस ने जबरन उससे यह जुर्म कबूल करवाया. प्रद्युम्न के पिता को भी पुलिस जांच और स्कूल प्रशासन पर भरोसा न होने से सीबीआई द्वारा जांच की अपील की गई. सीबीआई जांच में इस हत्याकांड का आरोपी स्कूल का 11वीं में पढ़ने वाला छात्र निकला, जिसे पुलिस ने मुख्य गवाह बनाया था. सीबीआई ने दावा किया कि छात्र ने पीटीएम और परीक्षा को टालने के उद्देश्य से हत्या की थी और इस हत्याकांड में अशोक का कोई हाथ नहीं है और ना ही यह यौन शोषण का मामला है.
बाद में आरोपी छात्र ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि परीक्षा टालने के लिए वह सोहना बाजार से चाकू खरीदकर लाया और प्रद्युम्न, जिसके साथ व पियानो क्लास जाता था उसे बाथरूम में ले गया. प्रद्युम्न उसे पहचानता था इसलिए साथ चला गया. वहाँ उसने प्रद्युम्न को चाकू मारा. जिससे प्रद्युम्न को खून की उल्टी हुई और वह चाकू पर ही गिर गया और उसकी गर्दन पर गहरा घाव हो गया था. कोर्ट ने फैसला किया है कि आरोपी छात्र पर आगे की कार्रवाई नाबालिग की तरह नहीं बल्कि बालिग मानकर की जाएगी. इस पूरे मामले में स्कूल प्रशासन पर आरोप लगे कि वह जानते थे कि हत्या छात्र ने ही की है.
पर सवाल यहाँ उठता है कि गुरुग्राम पुलिस और सीबीआई की जांच में यह ज़मीन आसमान का अंतर क्यों आया. जबकि पुलिस का कहना है कि 100 गवाहों से सवाल-जवाब करने और सीसीटीवी फूटेज के आधार पर अशोक को आरोपी ठहराया गया. और तो और सीबीआई ने जिस छात्र को आरोपी ठहराया है, पुलिस ने उसे अशोक के खिलाफ मुख्य गवाह बनाया था. वहीं सीबीआई ने कहा कि उसने 150 गवाहों से सवाल जवाब किए. पर सीसीटीवी देखते ही सबसे पहले छात्र पर ही शक जाता है क्योंकि प्रद्युम्न उसी के साथ बाथरूम में जाता दिख रहा है. तब पुलिस ने इस पहलू को कैसे नज़रअंदाज़ किया. क्या जानबूजकर यह लापरवाही बरती गई. जो भी हो, पर ऐसे में देश की दो मुख्य एजेंसियों के बार-बार अलग-अलग जांच के फैसले आने पर लोगों का अविश्वास बढ़ सकता है. अब देश की निगाहें कोर्ट की ओर है कि इस मामले में क्या फैसला आता है और कब? क्या उसे इंसाफ मिलेगा?
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