नवरात्र में सभी भक्त पूरी श्रद्धा से माँ की सेवा करते है. इसके लिए वो नौ दिन तक व्रत और माँ की पूजा करते है, जिससे माँ को प्रसन्न कर सके. बता दे कि सच्चे मन से की गई छोटी से छोटी आराधना भी शुभ फलदायी होती है. जो भक्त गण शुद्ध उच्चारण से पाठ करते हैं उन्हें 'दुर्गाष्टम का फल' अवश्य पढ़ना चाहिए,
प्रस्तुत है श्री दिव्य दुर्गाष्टकम् -
दुर्गे परेशि शुभदेशि परात्परेशि!
वन्द्ये महेशदयितेकरुणार्णवेशि!।
स्तुत्ये स्वधे सकलतापहरे सुरेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥1॥
दिव्ये नुते श्रुतिशतैर्विमले भवेशि!
कन्दर्पदारशतयुन्दरि माधवेशि!।
मेधे गिरीशतनये नियते शिवेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥2॥
रासेश्वरि प्रणततापहरे कुलेशि!
धर्मप्रिये भयहरे वरदाग्रगेशि!।
वाग्देवते विधिनुते कमलासनेशि!
कृष्णस्तुतेकुरु कृपां ललितेऽखिलेशि!॥3॥
पूज्ये महावृषभवाहिनि मंगलेशि!
पद्मे दिगम्बरि महेश्वरि काननेशि।
रम्येधरे सकलदेवनुते गयेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपा ललितेऽखिलेशि!॥4॥
श्रद्धे सुराऽसुरनुते सकले जलेशि!
गंगे गिरीशदयिते गणनायकेशि।
दक्षे स्मशाननिलये सुरनायकेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥5॥
तारे कृपार्द्रनयने मधुकैटभेशि!
विद्येश्वरेश्वरि यमे निखलाक्षरेशि।
ऊर्जे चतुःस्तनि सनातनि मुक्तकेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितऽखिलेशि॥6॥
मोक्षेऽस्थिरे त्रिपुरसुन्दरिपाटलेशि!
माहेश्वरि त्रिनयने प्रबले मुखेशि।
तृष्णे तरंगिणि बले गतिदे ध्रुवेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥7॥
विश्वम्भरे सकलदे विदिते जयेशि!
विन्ध्यस्थिते शशिमुखि क्षणदे दयेशि!।
मातः सरोजनयने रसिके स्मरेशि!
कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि॥8॥
दुर्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते
सर्वार्थदं हरिहरादिनुतां वरेण्याम्।
दुर्गां सुपूज्य महितां विविधोपचारैः
प्राप्नोति वांछितफलं न चिरान्मनुष्यः॥9॥
॥ इति श्री स्वामी मदनन्तानन्द-सरस्वती विरचितं श्री दुर्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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