जावेद अख्तर के लेखन की बात की जाए तो उनकी तारीफों के पुल बंधते जाएंगे, और निरंतर बंधते ही चले जायँगे. उनके लिखने की कला में उर्दू भाषा का प्रयोग और तलफ़्फ़ुज़ की बारीकियों को मापने वाले दीवानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. इसी के साथ-साथ जावेद अख्तर अपने उसूलों के भी बड़े पक्के हैं. इसीलिए उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म 'कुछ कुछ होता है' नहीं लिखी. जावेद ने शाहरुख के शो 'टेड टॉक्स- इंडिया नई सोच' के दौरान इस बात का खुलासा करते हुए कहा कि उस वक्त उन्हें लगा था कि फिल्म का नाम 'डबल मीनिंग' वाला है.
करन जौहर के निर्देशन में बनी फिल्म 'कुछ कुछ होता है' के लिए काम न करने के बारे में जब जावेद अख्तर से पूछा गया तो उन्होंने, "मुझे लगा कि फिल्म का नाम 'डबल मीनिंग' है, इसलिए मैं इस फिल्म को लिखने के लिए तैयार नहीं हुआ. लेकिन मैं 'कल हो ना हो' में शाहरुख के अभिनय का कायल हो गया और खुश हूं कि मैं उस यात्रा का हिस्सा बन सका. मैंने एक अर्थपूर्ण गीत बनाने के लिए उन शब्दों का इस्तेमाल किया, जिन्हें मैंने पहले खुद सिरे से नकार दिया था. लेकिन दर्शकों को गीत बहुत पसंद आया और बहुत मशहूर भी हुआ. यह गाना था 'कुछ तो हुआ है, कुछ हो गया है'."
साल 1998 में रिलीज 'कुछ कुछ होता है' ने 90 के दशक के अंतिम सालों में रिलीज हो रही मार-धाड़ वाली फिल्मों के बीच दोस्ती और प्यार का एक सन्देश लेकर उभरी थी. यह फिल्म एक ट्रेडमार्क बन गई थी. जावेद अख्तर के मना करने के बाद इसकी कहानी करन जौहर ने खुद ही लिखी थी.
शाहरुख खान टेड टॉक के जरिए देशभर में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग और नया काम करने वालों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की उम्मीद रखते हैं जिसे टेलीविजन चैनल स्टार प्लस पर ब्रॉडकास्ट किया जाता है.
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तो इसलिए जावेद अख्तर ने नहीं लिखी 'कुछ कुछ होता है'
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